इतिहासकार रामचंद्र गुहा का दार्शनिक दयाकृष्ण स्मृति व्याख्यान

 ओम थानवी


शनिवार शाम हैबिटाट सेंटर में जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने दार्शनिक दयाकृष्ण की स्मृति में एक शानदार व्याख्यान दिया। आयोजन रज़ा फ़ाउंडेशन का था, अशोक वाजपेयी संयोजक थे।
मैंने हाल के वर्षों में किसी एक वक्ता को सुनने के लिए इतने श्रोता नहीं देखे। बड़ी संख्या में लोग पीछे और दीवारों के क़रीब खड़े थे, ज़मीन पर बैठे थे। विचित्र ही है कि आज के अख़बारों में उनके व्याख्यान की कहीं एक पंक्ति पढ़ने को नहीं मिली!
प्रो. गुहा ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर छाए आठ ख़तरे गिनाए, उनकी व्याख्या की। इस विषय पर उनकी एक किताब भी आ रही है। संकीर्ण व्यक्तिपूजक राजनीति, फिसड्डी क़ानून, निचले स्तर पर कर्तव्यच्युत न्यायपालिका, पुलिस राज, सांस्कृतिक संस्थाओं का पतन, सरकारी विज्ञापनों पर अवलंबित पत्रकारिता, लेखकों की राजनीति-परस्ती आदि बिंदुओं की चर्चा करते हुए उन्होंने सत्ताधारी भाजपा ही नहीं, कांग्रेस और वामपंथी दलों पर भी तीखी चोट की। उन्होंने कहा, कांग्रेस ने शिक्षा संस्कृति में अपेक्षया बेहतर लोग चुने, पर अनिवार्यतः श्रेष्ठ नहीं; भाजपा ने घटिया लोग चुने हैं। उन्होंने फ़िल्म संस्थान, सेंसर बोर्ड, नेशनल बुक ट्रस्ट आदि कुछ संस्थानों का नाम भी लिया।

सबसे अहम बात उन्होंने यह कही कि आज़ादी और उसकी बाधाओं को मैं पहले 50-50 के अनुपात में देखता था। आज के हालात 40-60 के हो चले हैं।
गुहा मेरे पुराने परिचित हैं। अंत के सत्र में मैंने माइक माँग उन पर चुटकी ली कि 40-60 के अनुपात में आप कुछ उदार नहीं हो गए? हालात कहीं ज़्यादा बदतर दिखाई दे देते हैं!
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